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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

कोई कहता है 1945 कोई कहता है 1985!!!

कोई कहता है 1945 कोई कहता है 1985!!! कोई कहता है रूस में , कोई कहता है दिल्ली के लाल किले में !!!
क्या है ये सब ?? क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है भारत की जनता के साथ ??? क्यों ये सब रिसर्चर गांधी - नेहरु परिवार की बनी बनायी लकीर पर चलते रहते है ??? शहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्ट को रिव्यु करवाने के बाद ख़ारिज कर दिया गया , मगर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को किस आधार पर दबा लिया गया ? क्यों उसका रिव्यु
नहीं करवाया गया ? क्यों उस रिपोर्ट पर संसद में बहस नहीं ??? जब मुखर्जी महोदय ने ऑफ द रिकॉर्ड केमरे के सामने कहा कि उनको 100% विश्वाश है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी है लेकिन ओन द रिकॉर्ड वो ये बात कहने से क्यों बचते रहे ? उनकी क्या मजबूरियां थी ? क्या कोई दबाव था उन पर ? क्या वास्तव में 1985 में जिन बाबा जी का अंतिम संस्कार हुआ वो "वास्तविक गुमनामी बाबा" थे? या फिर उन्होंने अपना कोई प्रतिरूप वहां पर स्थापित कर के वो स्थान त्याग दिया था ? कारगिल युद्ध के समय सेना के बड़े पदाधिकारी और वाजपेयी जी सेन्य हेलिकोप्टर में "सीतापुर" क्या लेने और किस से मिलने गए थे ? फैजाबाद में मिलने वाला सामान ये जरुर स्थापित कर सकता है कि वो सामान नेताजी का हो सकता है मगर जिसकी अंतिम क्रिया की गयी वो "नेताजी" ही थे ? ये कैसे साबित होगा ?
तीन महीने में बिना मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट पर बहस के बिना कोर्ट के आदेश से गठित की जाने वाली कमेटी क्या साबित करेगी? क्या ये कमेटी उन सभी गवाहों को वापस गवाही के लिए बुलाएगी जिन्होंने मुखर्जी कमीशन में अपना साक्ष्य दिया था ?
आप लोगो को नहीं लगता कि पिछले एक वर्ष से "नेताजी" का नाम
काफी जोर शोर से अलग अलग प्रकरणों को लेकर उठाया जा रहा है और लोगो को भ्रमित किया जा रहा है ??? सच को जानना है तो कुछ मेहनत आप लोगो को करनी होगी या फिर आने वाले समय का इंतज़ार करिए बिना किसी पूर्वाग्रह के ।
जय हिन्द! है सुभाष !

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