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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

" केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य " के मामले में भारतीय संविधान

जैसा कि उच्चतम न्यायलय की १३ जजों की संविधान पीठ ने वर्ष १९७३ में " केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य " के मामले में भारतीय संविधान के बारे में कहा है कि भारतीय संविधान, स्वदेशी उपज नहीं है और भारतीय संविधान का स्त्रोत भारत नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संवेधानिक संस्थाए भी तो स्वदेशी उपज नहीं है और न ही भारत के लोग इन संवेधानिक संस्थाओ के श्रोत ही है

उपरोक्त वाद में उच्चतम न्यायलय के न्यायधिशो ने भारत के संविधान के श्रोत तथा वजूद की चर्चा करते हुए कहा है कि
१- भारतीय संविधान स्वदेशी उपज नहीं है
- जस्टिस पोलेकर
२- भले ही हमें बुरा लगे परन्तु वस्तुस्थिति ये है कि संविधान सभा को संविधान लिखने का अधिकार भारत के लोगो ने नहीं दिया था बल्कि ब्रिटिश संसद ने दिया था . भारत के नाम पर बोली जाने वाली संविधान सभा के सदस्य न तो भारत के प्रतिनिधि थे और न ही भारत के लोगो ने उनको ये अधिकार दिया था कि वो भारत के लिए संविधान लिखे - जस्टिस बेग

३- यह सर्व विदित है कि संविधान की प्रस्तावना में किया गया वादा ऐतिहासिक सत्य नहीं है . अधिक से अधिक सिर्फ ये कहा जा सकता है कि संविधान लिखने वाले संविधान सभा के सदस्यों को मात्र २८.५ % लोगो ने अपने परोक्षीय मतदान से चुना था और ऐसा कौन है जो उन्ही २८.५% लोगो को ही भारत के लोग मान लेगा - जस्टिस मेथ्हू

४- संविधान को लिखने में भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और न ही कोई योगदान - जस्टिस जगमोहन रेड्डी


उच्चतम न्यायालय के १३ जजों की संविधान पीठ में मात्र एक जज जस्टिस खन्ना को छोड़ कर अन्य १२ जजों ने एक मत से ये कहा था कि, भारतीय संविधान का श्रोत भारत के लोग नहीं है बल्कि इसे ब्रिटेन की संसद द्वारा भारतीयों पर थोपा गया है

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 8

काबिले गौर बात है कि यदि ब्रिटिश संसद की ये नियति होती कि तत्कालीन "संविधान सभा " इन्डियन डोमिनियन के लिए संविधान लिखे , तो धारा ८ में स्पष्ट उल्लेख होता जैसा कि धारा ६ में कानून बनाने के विषय में स्पष्ट उल्लेख है

बल्कि सत्य तो ये है कि इस संविधान को भारत के लोगो से पुष्ठी भी नहीं करवाया गया है , बल्कि संविधान में ही धारा ३८४ की धारा लिखकर , उसी के तहत इसे भारत के लोगो पर थोप दिया गया है जो अनुचित , अवैध और अनाधिकृत है

इस तरह अनाधिकृत लोगो द्वारा तैयार किये गए संविधान के तहत कार्यरत सभी संवेधानिक संस्थाएं अनुचित , अवैध और अनाधिकृत है जैसे --- संसद , विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आदि जिसे बनाने में भारत के लोगो की सहमति नहीं ली गयी है


संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 7

इस प्रकार इण्डिया का शासन प्रबंध करने हेतु १५ अगस्त १९४७ को स्थिति ये थी -----

१- थोड़े समय के लिए कार्यपालिका की जिम्मेदारी का निष्पादन करने हेतु सितम्बर १९४६ में स्थापित जो अंतरिम सरकार थी , वो पंडित नेहरु के नेतृत्व में सर्वदल समर्थित थी। इस प्रकार के गठन में भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और ना ही कोई योगदान था

२- विधायिका की जिम्मेदारियों का निष्पादन करने हेतु जुलाई १९४६ में गठित "संविधान सभा" को थोड़े समय के लिए प्रोविजनल संसद की मान्यता मिली थी . जुलाई १९४६ में गठित "संविधान सभा" के गठन में भी आज़ाद भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और न ही कोई योगदान .
आज़ाद भारत के लोगो ने उक्त संविधान सभा को न तो चुना ही था और न ही उसे अधिकृत किया था कि वे लोग भारत के लोगो के लिए संविधान लिखे .

संविधान लिखने के लिए योजनाये बनाने हेतु ब्रिटिश संसद कृत " भारतीय सवतंत्रता अधिनियम -१९४७" की धारा ३ के तहत संविधान सभा को अधिकृत किया गया था

३- फेडरल कोर्ट को उच्चतम न्यायालय की जिम्मेदारियों के निष्पादन करने हेतु अधिकृत किया गया था

४- भारत के लोगो को उसी
" भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -१९४७ " के अंतर्गत ही राजनितिक लोगो को मात्र चुनने का अधिकार दिया गया था

इस प्रकार स्पष्ट स्थिति ये है कि १९४६ में गठित संविधान सभा को आज़ादी के बाद , ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था कि वे अपने अर्ध राज्य के लिए संविधान बनाने हेतु उचित व्यवस्थ करें जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश संसद द्वारा अधिकृत किया गया था भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम की धारा ८ देखें ---------- धारा ८ के तहत , संविधान सभा को को सिर्फ इसके लिए अधिकृत किया गया थ कि वो इंडियन डोमिनियन के लिए , संविधान लिखने हेतु जरुरी ओप्चारिक्ताओ कि मात्र तैयारी करेंगे ना कि खुद संविधान लिखने लगेंगे

ये स्थिति १९४७ के अधिनियम की धारा ६ से और स्पष्ट हो जाती है क्योंकि धारा ६ के अंतर्गत दोनों अर्धराज्यों की संविधान सभा को मात्र कानून बनाने के लिए पूर्ण अधिकार दिया गया था

और ये सर्वविदित और स्थापित नियम है कि
" कानून बनाने वाला संविधान नहीं बनाता है "

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 6

इस बीच मुस्लिम लीग की बंटवारे की मांग और उसके समर्थन में "सीधी कार्यवाही योजना" के कारण देश की कानून व्यवस्था तो बिगड ही गयी थी, साथ ही राजनेतिक परिस्थितिय तेजी से बदल रही थी । मार्च १९४७ में माउन्टबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया और वो भारत आते ही बंटवारा और सत्ता हस्तांतरण की योजना बनाने लगा

इसके पहले कि संविधान सभा अपने निर्धारित कार्यक्रम संघीय भारत का संविधान बनाने का कार्यक्रम पूरा करती ३ जून १९४७ को भारत का बंटवारा मंजूर कर लिया गया और भारत के बंटवारे को पुरा करने के लिए ब्रिटिश संसद ने " भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -१९४७ " को पास करके १५ अगस्त १९४७ को इण्डिया - पाकिस्तान के रूप में दोनों को अर्धराज्य (dominion) घोषित कर दिया

अर्धराज्य इसलिए घोषित कर दिया कि जब तक दोनों देश अपने लिए संविधान बना कर , उसके तहत अपना शासन प्रबंध प्रारंभ नहीं कर देते हैं तब तक इण्डिया - पाकिस्तान का शासन प्रबंध ब्रिटिश संसद कृत " भारत शासन अधिनियम -१९३५" के तहत ही चलता रहेगा


संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 5

९ दिसंबर १९४६ को संविधान सभा की पहली बैठक बुलाई गयी जिसमे राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष चुना गया
१३ दिसंबर १९४६ को संविधान की प्रस्तावना को पेश किया गया, जिसे २२ जनवरी १९४७ को स्वीकार किया। इस बैठक में कुल २१४ सदस्य उपस्थित थे, अर्थात ३८९ सदस्यों वाली विधान में कुल ५५% सदस्यों ने ही संविधान की प्रस्तावना को स्वीकार कर लिया, जिसे संविधान की आधारशिला माना जाता है, उसी १३ दिसंबर १९४६ की प्रस्तावना को, बंटवारे के बाद, आज़ाद भारत के संविधान की दार्शनिक आधारशिला के रूप में स्वीकार किया गया है

ध्यान देने की बात है कि २२ जनवरी १९४७ को, संविधान की प्रस्तावना के जिस दार्शनिक आधारशिला को स्वीकार किया गया था उसे अखंड भारत के संघीय संविधान के परिप्रेक्ष्य में बनाया गया था वह भी इस आशय से कि इसे ब्रिटिश सरकार की स्वीकृति अनिवार्य थी क्यों कि २२ जनवरी १९४७ को भारत पर अंग्रेजी संसद का ही हुकुम चलता था

यह भी काबिले गौर है कि २२ जनवरी १९४७ कि संविधान सभा कीबैठक में, देशी रियासतों के मनोनीत सदस्य तथा मुस्लिम लीग के ७२ निर्वाचित सदस्य उपस्थित नहीं थे

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 4

मुस्लिम लीग की " सीधी कार्यवाही योजना " को सर्वप्रथम बंगाल में चलाया गया जहाँ सुरहरावर्दी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की सरकार शासन कर रही थी , शहर कलकत्ता में दिनांक २० अगस्त १९४६ को, ५००० हिन्दुओ का कत्ले आम किया गया तथा अन्य १५००० घायल हुए तथा हजारो करोडो की संपत्ति नष्ट हुई

मुस्लिम लीग की " सीधी कार्यवाही योजना " के कारण देश की कानून व्यवस्था इतनी बिगड़ गयी कि, ब्रिटिश सरकार ने ये घोषणा कर दी कि यदि भारत के लोग मिलजुल कर अपना संविधान नहीं बना लेते है तो ऐसी हालत में वें कभी भी कहीं पर किसी के हाथो भारत की सत्ता सौंप कर इंग्लेंड वापस चले जायेंगे

सितम्बर १९४६ में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जो मुस्लिम लीग को छोड़ कर अन्य दलों द्वारा समर्थित थी , एक माह बाद मुस्लिम लीग भी अंतरिम सरकार में शामिल हो गयी किन्तु संविधान सभा का लगातार बहिष्कार करती रही , जवाहार लाल नेहरु अंतरिम सरकार में प्रधानमंत्री थे

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 3

केबिनेट मिशन प्लान के १९४६ को सब दलों द्वारा स्वीकार कर लेने के पश्चात् जुलाई १९४६ में संविधान सभा का चुनाव हुआ जिसमे मुस्लिम लीग को ७२ सीटें प्राप्त हुई, कांग्रेस को १९९ तथा अन्य १३ सदस्यों का समर्थन प्राप्त था जिस से उनकी संख्या २१२ थी तथा अन्य १६ थे

चुनाव के पश्चात पंडित जंवाहर लाल नेहरु ने ये बयान दिया कि केबिनेट मिशन प्लान १९४६ की शर्तो को बदल देंगे, जिसके कारण मुस्लिम लीग उसके नेता मोहम्मद अली जिन्ना बिदक गए तथा केबिनेट मिशन प्लान १९४६ को दी गयी अपनी स्वीकृति को वापस ले लिया और बंटवारे की अपनी पुराणी मांग को दोहराना शुरू कर दिया

अपनी मांग को मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने अपनी " सीधी कार्यवाही योजना" की घोषणा कर दी , जो दुर्भाग्य से मार काट, आगजनी की योजना थी

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 2

३- उक्त ३०० सदस्यों में से ७८ सदस्यों को मुस्लिम समाज द्वारा चुना जाएगा क्यों की ये ७८ सीटें मुसलमानों के लिए सुरक्षित होंगी

४- चूँकि बंटवारा नहीं होगा, इसलिए मुस्लिम समाज के लिए संविधान में समुचित प्रावधान बनाया जाएगा

५- संविधान सभा सर्वप्रभुत्ता संपन्न नहीं होगी क्यों कि वह केबिनेट मिशन प्लान १९४६ कि शर्तो के अंतर्गत रहते हुए संविधान लिखेगी, जिसे लागू करने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति आवश्यक होगी

६- इस दौरान भारत का शासन प्रबंध भारत सरकार अधिनियम १९३५ के अंतर्गत होता रहेगा, जिसके लिए सर्वदलीय समर्थित एक अंतरिम सरकार को केंद्र में गठित किया जाएगा

इस प्रकार की अनेक शर्तें इस केबिनेट मिशन की थी

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम

मार्च १९४६ को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने अपने मंत्रिमंडल के तीन मंत्रियो को भारत में भेजा था कि वे भारत के राजनेतिक नेताओ, गणमान्य नागरिको और देशी रियासतों के प्रमुखों से विचार के बाद आम सहमति से सत्ताहस्तांतरण की एक योजना बना कर उसे क्रियान्वित करें तथा भारत के लोगो को सत्ता हस्तांतरित कर दे
इस दल को केबिनेट मिशन १९४६ के नाम से जाना जाता है
इस केबेनेट मिशन ने अपनी एक योजना का एलान किया जिसे भारत के तत्कालीन सभी दलों ने स्वीकार किया जिसकी अनेक शर्तो में से निम्न मूलभूत शर्तें थी -

- भारत का बंटवारा नहीं होगा, भारत का ढांचा संघीय होगा , १६ जुलाई १९४७ को सत्ताहस्तान्त्रित होगा,
जिसके पहले संघीय भारत( united इंडिया) का एक संविधान बना लिया जाएगा, जिसके तहत आज़ादी के उपरान्त भारत का शासन प्रबंध होगा


२- संविधान लिखने के लिए ३८९ सदस्यों के "संविधान सभा" का गठन किया जाएगा, जिसमे ८९ सदस्य देशी रियासतों के प्रमुखों द्ववारा मनोनीत किये जायेंगे तथा अन्य ३०० सदस्यों का चुनाव ब्रिटिश शासित प्रान्तों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाएगा ( इन ब्रिटिश शासित प्रान्तों की विधानसभा के सदस्यों का चुनाव, भारत सरकार अधिनियम १९३५ के तहत सिमित मताधिकार से , मात्र १५% नागरिको द्वारा वर्ष १९४५ में किया गया था जिसमे ८५% नागरिको को मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया )

"इण्डिया" का संविधान कितना "भारतीय"?

भारत ना तो भारत की तथाकथित आज़ादी १५ अगस्त १९४७ को सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न रूप से आज़ाद हुआ था और ना ही २६ जनवरी १९५० को भारत का संविधान लागू हो जाने के बाद बल्कि सत्यता ये है कि भारत आज भी ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के दायरे में ब्रिटेन का एक स्वतंत्र स्वाधीन ओपनिवेशिक राज्य है जिसकी पुष्टि स्वयं ब्रिटिश सम्राट के उस सन्देश से होती है जिसे देश की तथाकथित आज़ादी प्रदान करते समय लार्ड माउंटबेटन ने १५ अगस्त १९४७ को भारत की संविधान सभा में पढ़ कर सुनाया था और ये सन्देश निम्न प्रकार था :-
" इस एतिहासिक दिन, जबकि भारत ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में एक स्वतंत्र और स्वाधीन उपनिवेश के रूप में स्थान ग्रहण कर रहा है.
मैं आप सबको अपनी हार्दिक शुभकामनाये भेजता हूँ "