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रविवार, 28 अगस्त 2011

तृतीय विश्‍व युद्ध का खतरा?

लीबिया का संकट धीरे धीरे विश्व युद्ध में भी बदलने के आसार दिखा दे रहे हैं। लीबिया के मुद्दे पर देश अब दो धड़ों में बंट रहे हैं। अमेरिका के विरोधी देश, धीरे धीरे या तो गद्दाफी के पक्ष में हैं या फिर वे चुप हैं। ईरान ने खुलकर धमकी दी है कि यदि नाटो सेनाओं ने लीबिया पर सैन्य कार्रवाई की तो वहां उसके सैनिकों की कब्रगाह बन जाएगी। ईरान के राष्ट्रपति मुहम्मद अहमजनेजाद ने धमकी दी कि यदि अमेरिका और उसके मित्र देशों ने उत्तरी अफ्रीका या फिर मध्य पूर्वी देशों में किसी पर भी हमला बोलने की कोशिश की, तो उन्हें करारा जवाब मिलेगा।
अमेरिका ने अपने दो युद्ध पोत लीबिया के लिए पहले ही रवाना कर दिए हैं, जो लीबिया के नजदीक पहुंच रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन कह चुके हैं कि वे लीबिया को नो फ्लाइंग जोन घोषित करना चाहते हैं। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र को निर्णय लेना है। नो प्लाइंग जोन घोषित होने की स्थिति में गद्दाफी समर्थक सेना नागरिकों पर हवाई हमले नहीं कर पाएंगे और ऐसे हमले कर रहे किसी भी विमान को मार गिराया जाएगा। लेकिन आशंका है कि रूस नो फ्लाइंग जोन के प्रस्ताव का विरोध करेगा। रूस का मानना है कि जबतक गद्दाफी जनता पर हवाई हमले नहीं करते, इस तरह का प्रतिबंध पूरी तरह गलत है।
संयुक्त राष्ट्र में भी क्यूबा, निकारागुआ और वेनेजुएला ने लीबिया को मानवाधिकार परिषद से हटाने के पक्ष में वोट नहीं दिया और वे भी लीबिया पर सैन्य कार्रवाई के विरोध में हैं। अमेरिका विरोधी देश इस मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

चीन ने भारत की सीमा पर ऐटमी मिसाइलें तैनात कीं

चीनड्रैगन की सैन्य साज-ओ-सामान की सीमा पर तैनाती का सिलसिला जारी है। भारत से लगी सीमा पर चीन ने सीएसएस-5 मीडियम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल की तैनाती भी कर दी है। अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन की ताज़ा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की वजह से भरोसे की बहुत कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक यही वजह है कि चीन भारत से सटी सीमा पर अपने सैन्य ढांचे का तेजी से विकास कर रहा है जिसका भविष्य में सैन्य अभियानों में इस्तेमाल किया जा सके।

रिपोर्ट में कहा गया है, 'शक-शुबह और भरोसे की कमी की वजह से दोनों देशों के बीच रिश्ते में तनाव रहता है। भारत पर सैन्य नजरिए से दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान लिबरेशन आर्मी ने परमाणु क्षमता वाली सीएसएस-2 आईआरबीएम मिसाइलें बड़े पैमाने पर तैनात कर दी हैं।' पेंटागन की यह रिपोर्ट अमेरिकी संसद के सामने पेश की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत से लगी सीमा पर सड़कों के निर्माण का उद्देश्य पश्चिमी चीन की आर्थिक तरक्की है। लेकिन अच्छी सड़कें पीएलए को सीमा पर अपने सैन्य अभियानों में भी मदद मिलेगी।

चीन के पाकिस्तान के साथ नजदीकी सैन्य संबंधों के अलावा हिंद महासागर, मध्य एशिया और अफ्रीका में चीन की लगातार बढ़ती मौजूदगी से भारत चिंतित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के हथियारों को खरीदने वाला प्रमुख देश पाकिस्तान है। इसके मुताबिक पाकिस्तान ने हाल ही में एफ 7 और जेएफ 17फाइटर एंटी शिप मिसाइलें, हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, हेलीकॉप्टर, चेतावनी प्रणाली चीन से हासिल की है।

गौरतलब है कि लेह-लद्दाख में सीमा के पास ही चीन बड़े पैमाने सड़कें वगैरह बना रहा है। चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का ही हिस्सा मानता है। भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा को लेकर विवाद रहा है। चीन ने कुछ दिनों पहले ही वारयाग नाम के लड़ाकू जहाज को समुद्र में तैनात कर दिया है। हालांकि, चीन की यह दलील है कि वह वारयाग का इस्तेमाल सिर्फ ट्रेनिंग और प्रयोगों के लिए करेगा। चीन ने श्रीलंका और बांग्लादेश में बंदरगाह भी बनाए हैं।

बुधवार, 24 अगस्त 2011

क्या हम आज़ाद है ??????????????/

सत्य ॐ! वंदे मातरम! जय हिन्द!
!! ॐ जय श्री सुभाष हर हर महादेव!!
कुछ तथ्य :-
* सन 1971 तक भारत के राष्ट्रपति भवन पर तिरंगा झण्डा ना होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया यूनियन जेक झण्डा लगा हुआ था । क्यों?
* यदि १५ अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ था तो 22 जून 1948 तक के लिए भारत का प्रथम गर्वनल जनरल माउण्टबेटन को बनाया गया। क्यों?
* सत्ता हस्तांतरण के साथ नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस व स्थापित आजाज हिन्द फौज के सेनिकों पर व भारतीय जनता पर क्या पाबंदी ओर प्रतिबंध है ?
* खंडित भारतीय संविधान के अनुछेद 366, 372, 392, 395 को बदलने की या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है क्यों?
* ब्रिटिश नेशनलिटी एक्ट 1948 में बने ब्रिटानिया कानून के तहत भाग (1) 1 के अनुसार हर भारतीय ब्रतानिया की प्रजा है ओर यह कानून भारत के अनुसार गणराज्य प्राप्त करने के पश्चात भी लागू है। ऐसा क्यों है ?
लाल किले से आई आवाज़, कहाँ है देश का तख्तो ताज।
लन्दन
में है तख्तो ताज, याद करो इस बात को आज।
जहाँ
है देश का तख्तो ताज, वहीँ है देश का छठा जार्ज।
ये
आज़ादी है बेकार, सब धोखा ही धोखा है मेरे यार
१५ अगस्त १९४७ को देश को आज़ादी नहीं मिली, १४ अगस्त १९४७ की मध्य रात्री को सत्ता हस्तांतरण का समझौता हुआ था । भारत आज भी ब्रिटिश सरकार के अधीन है , सम्पूर्ण रूप से आज़ाद नहीं है। (देखें भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७)
प्रश्न ये है कि लार्ड माउन्टबेटेंन, मो० अली जिन्ना और पंडित जंवाहर लाल नेहरु के बीच वार्ता होने पर जो समझौता हुआ था वो आज तक जनता के सामने क्यों नहीं आया ?
कोई भी समझौता किसी भी प्रकार का क्यों ना हो , हर समझौते में निम्न तीन बातें अवस्य होती है :-
१- यह कि समझौता किन शर्तो के आधार पर हुआ है ?
२- यह कि समझौता कितने वर्षो के लिए हुआ है ? उसकी समयावधि क्या है ?
३- समझौता सार्वजानिक है या गोपनीय है ?
यदि ये समझौता सार्वजानिक था तो आज तक प्रकाशित या जनता की जानकारी में क्यों नहीं लाया गया ?
लेकिन लगता है ये समझौता गोपनीय था ....... लेकिन फिर भी इसकी समयावधि तो होगी ??? (१९९९ तक थी )
और इसकी गोपनीयता बनाये रखने की शपथ हर नेता को दिलाई जाती रही है ॥
इसकी एक बानगी देखिये :-
जून, १९४८ को भारत के दूसरे गर्वनल जनरल के रूप में चक्रवरती राजगोपालचर्या ने निम्न शपथ ली कि
"मैं चक्रवर्ती राजगोपालचर्या यथाविधि यह शपथ लेता हूँ कि मैं सम्राट जार्ज षष्ट और उनके वंशधर ओर उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा एव मैं
चक्रवर्ती राजगोपालचर्य यह शपथ लेता हूँ कि मैं गर्वनल जनरल के पद पर रहते हुए सम्राट जार्ज षष्ट और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सेवा करूंगा। "
उक्त भाषा गुलामी की प्रतीक है। ऐसा क्यों है ?
इन कुछ तथ्यो से यह सपष्ट होता है कि हम पूर्ण रूप से आजाद नहीं है , ब्रिटिश सरकार के साथ किए गए समझौते के तहत आंशिक रूप से आजाद है ।
अत: प्रत्येक नागरिक को इन तथ्यो पर गंभीरता एवं निष्पक्षता से विचार करना चाहिए।

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

पहली बार राजस्थान के पास पहुंची चीनी सेना, पाकिस्तान को सिखा रही लड़ाई के गुर

भारत की सीमा से महज 25 किलोमीटर दूर चीन और पाकिस्तान साझा युद्धअभ्यास कर रहे हैं। यह अभ्यास राजस्थान में जैसलमेर-बीकानेर जिलों से लगती सीमा के पास हो रहा है। इसमें चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की 101 इंजीनियरिंग रेजीमेंट और पाकिस्तान रेंजर्स के जवान भाग ले रहे हैं।

युद्ध अभ्यास शुरू हुए एक सप्ताह हो चुका है। एक महीने के इस युद्ध अभ्यास के बारे में जानकार बताते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि चीन की सेना पश्चिम में भारतीय सीमा के पास सक्रिय देखी गई है।

खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक चीन की ओर से पाकिस्तान को हर तरह की सैन्य मदद मिल रही है। वह पाकिस्तान को भारत के पश्चिमी क्षेत्र से सटे इलाकों में ताकत बढ़ाने के लिए टैंक अपग्रेड टेक्नोलॉजी और मानवरहित विमान (यूएवी) भी मुहैया करा रहा है।

ताजा साझा युद्ध अभ्यास के बारे में जानकारी होने से भारतीय सेना इनकार कर रही है। आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तान रेंजर्स सालाना अभ्यास करती है, लेकिन अभी इस तरह का कोई युद्ध अभ्यास चलने के बारे में खबर नहीं है। पर खुफयिा सूत्र बताते हैं कि पीएलए पाकिस्तानी सैनिकों को यह सिखा रही है कि दुर्गम क्षेत्रों से टैंक और दूसरे भारी सैन्य वाहनों को कैसे लाया-ले जाया जा सकता है। और यह भी कि सेना को रास्ता देने के लिए पुल कैसे बनाया जाए। यह अभ्यास पाकिस्तान के रहिमियार खान इलाके के सेम नाला में चल रहा है। इस जगह की सीमा जैसलमेर के टनोट-किशनगढ़ इलाके से लगती है। अभ्यास में भाग लेने के लिए चीन की पूरी ब्रिगेड मौजूद है।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

क्या हम इतने धीरे है ?

दोस्तों आप लोगो से उम्मीद है की ज्यादा से ज्यादा इस ब्लॉग से जुड़े
और इसका प्रचार प्रसार करें
क्यों कि हम इस देश की जनता है और जनता का हक़ है सही गलत का फैसला लेने का
हम लोगो ने ही इन नेताओं के हाथो में देश की बागडोर दी है

क्या इस लिए कि ये हमे ही अन्धेरें में रखें?
क्या इस लिए कि ये हमे ही लूटते रहें ?
क्या इस लिए कि हमारे देश कि संस्कृति के साथ ये खिलवाड़ करते रहें ?

दोस्तों अब सोने का नहीं जागने का समय आ गया है
समय आ गया है
आमने सामने की लड़ाई का

समय है एक और क्रांति का
सही मायनों में आज़ाद होने का

और हम
ये आज़ादी ले कर रहेंगे

बुधवार, 3 अगस्त 2011

समझोते को सार्वजनिक करें

वैसे जहाँ तक मुझे पता है ये समझोता १९९९ तक सार्वजानिक नहीं किया जा सकता था
लेकिन अब कोई प्रतिबन्ध नहीं है
और जब कोई प्रतिबन्ध नहीं है
तो फिर इसको सार्वजानिक करने से कोई भी सरकार कतरा क्यू रही है


ये सब बदलना आवश्यक है परन्तु हमें सरकार नहीं व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और इस व्यवस्था को जड़ मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करता है |

अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टरसिस्टम

हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो वास्तव में अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टरसिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली है. ये कहीं से भी न संसदीयहै और ना ही लोकतान्त्रिक है. परन्तु इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधिमें कहा गया है.

कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना

अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था. मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई यदि गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था. अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना प्रारंभ किया, पहला मदिरालय प्रारंभ किया, पहलावेश्यालय प्रारंभ किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थीवहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां मदिरालय खुला, वहां वहां गाय के काटने केलिए कत्लखाना खुला | ऐसे पूरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की. अब ये सबक्यों बनाये गए थे ये आप सब सरलता से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के पश्चात ये सबसमाप्त हो जाना चाहिए था परन्तु नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है.

राशन कार्ड का सिस्टम

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम बनाया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध मेंअंग्रेजों को अनाज की आवश्यकता थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे. इसीलिए उन्होंनेयहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड प्रारंभ किया. वो प्रणाली आज भी लागू है इस देशमें क्योंकि वो इस संधि में है और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमालउसी समय प्रारंभ किया गया और वो आज भी जारी है. जिनके पास राशन कार्ड होता थाउन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था. आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचानपत्र है इस देश में.

वार्षिक बजट संध्या को 5:00 बजे

आप में से बहुत लोगों को स्मरण होगा क़ि हमारेदेश में स्वतंत्रता के 50 साल के पश्चात तक संसद में वार्षिक बजट संध्या को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में संध्या के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधासे उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी दासता में रहा है ये देश. येभी इसी संधि का भाग है |

विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी

भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी केविरूद्ध था और संधि की गणनानुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ कर जाना था और वोचली भी गयी परन्तु इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत सेपर शेष 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगीऔर उसी का परिणाम है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तानयूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां स्वतंत्रता के पश्चात भी इस देश में बची रह गयी औरलूटती रही और आज भी वो सब लूट रही है.|
अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसेही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का भाग है. आपदेखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहींअंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहींआती हैतथा उन 1% लोगों को देखो क़ि उन्हें मालूम ही नहींरहता है क़ि उनको पढना क्या है और uno में जा कर भारत के स्थान पर पुर्तगाल का भाषणपढ़ जाते हैं |

अंग्रेजों का ही अनुसरण

इस संधि में एक और विशेष बात है, इसमें कहा गया है क़ि यदि हमारेदेश के (भारत के) न्यायालय में कोई ऐसा केस आ जाये जिसके निर्णय के लिए कोई कानून नहो इस देश में या उसके निर्णय को लेकर संविधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे केसों का निर्णय अंग्रेजों की न्याय पद्धति केआदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्यायपद्धतिका आदर्श उसमें लागू नहीं होगा. कितनी लज्जास्पदस्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करनाहोगा.

गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं

इस संधि के अनुसार हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दियाजायेगा. हमारे देश के समृद्धि और यहाँ उपस्थित उच्च तकनीक के कारण ये गुरुकुल ही थेऔर अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्डमेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूंगी जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था"“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation”.गुरुकुल का अर्थ हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो किहमारी मूर्खता है यदि आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे.

आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं

इस संधि की शर्तों के अनुसार हमारेदेश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा अर्थात हमारे देश की विद्या हमारेही देश में समाप्त हो जाये ये षडंत्र किया गया. आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करनेका भरसक प्रयास किया था परन्तु ऐसा कर नहीं पाए. संसार में जितने भी पैथी हैं उनमेये होता है क़ि पहले आप रोगग्रस्त हों तो आपका इलाज होगा परन्तु आयुर्वेद एक ऐसीविद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप रोगग्रस्त ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्चीघटना बताता हूँ, जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में रोग शैय्या पर पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरोंने कहा क़ि इनके शरीर का रक्त दूषित हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखारठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और रक्त निकल जाने केकारण से जोर्ज वाशिंगटन का देहांत हो गया. ये घटना 1799 की है और 1780 में एकअंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख कर गया था अर्थात कहने आशय येहै क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय और ये सब आयुर्वेद केकारण से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारी सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |

अन्थ्रोपोलोग्य

हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि मेंलिखा है और हास्यप्रद ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी औरअपने यहाँ अलग प्रकार की शिक्षाव्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री कामहत्व है और उनके यहाँ ठीक विपरीत है. मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार
करती हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? यदि नहीं है तोमेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई महत्व नहीं है. इसके विपरीत उनके यहाँ ऐसा कदापिनहीं है आप यदि कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है परन्तु कोई डिग्री नहींहैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा. नोबेल पुरस्कार पाने के लिएआपको डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है. हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्रीमें बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है. ये जो 30 नंबर का पासमार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था की देन है, अर्थात आप भले ही 70 नंबरमें फेल है परन्तु 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसे शिक्षा तंत्र से क्या उत्पन्न हो रहे हैं वो सब आपके सामने ही है और यही अंग्रेज चाहते थे. आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है अन्थ्रोपोलोग्य.| जानते है इसमें क्यापढाया जाता है ? इसमें दास लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में प्रारंभ किया था और आज स्वतंत्रता के 64 वर्षों केपश्चात भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविलसर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है

अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे

इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे. नगर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे हीरखे जायेंगे. आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितनेनाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं. लार्ड डलहौजी केनाम पर डलहौजी नगर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (वैसे वो पुर्तगाली था ) रिपनरोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसेहजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं. आप भी अपने नगर में देखिएगावहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक नगर हैसूरत, इस सूरत में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला. अंग्रेजों को जब जहाँगीरने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत मेंउन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये दासता का पहला अध्याय आज तक सूरत शहरमें खड़ा है |

नियम चाहे वो किसी क्षेत्र में हो परिवर्तित नहीं

इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ केचले जायेंगे परन्तु इस देश में कोई भी नियम चाहे वो किसी क्षेत्र में हो परिवर्तितनहीं जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 नियम वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसेअंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का अर्थ Irish है वहीँ भारत के IPC में "I" काअर्थ Indian है शेष सब के सब कंटेंट एक ही है, कोमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहींहै)Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चलरहे हैं बिना फुल स्टॉप और कोमा बदले हुए |

"व्हीलर बुक स्टोर"

आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक की दुकान देखतेहोंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि के नियमों के अनुसार है. ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था. इसने इस देश की हजारों माँ, बहन और बेटियों केसाथ बलात्कार किया था. इसने किसानों पर सबसे अधिक गोलियां चलवाई थी. 1857 कीक्रांति के पश्चात कानपुर के निकट बिठुर में व्हीलर व नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँके सभी 24 हजार लोगों को हत्या करवा दी थी चाहे वो गोदी का बच्चा हो अथवा मरणासन्नस्थिति में पड़ा कोई वृद्ध. इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी प्रारंभहुई थी तथा वही भारत में आ गयी. भारत स्वतंत्र हुआ तो ये समाप्त होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम में ही परिवर्तन कर देते. परन्तु वो परिवर्तित नहीं किया गयाक्योंकि ये इस संधि में है

भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे

इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक तथा अभी कुछ समय पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने नयायालय में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है

सुभाष चन्द्र बोस को जीवित अथवा मृत अंग्रेजों केहवाले करना

इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जीवित अथवा मृत अंग्रेजों केहवाले करना था. यही कारण रहा क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे औरकहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को ज्ञात नहीं है. समय समय पर कई अफवाहें फैली परन्तुसुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और ना ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई.अर्थात भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी (जो वास्तव में भारत के 'राष्ट्रपिता' थे, गाँधी जी तो 'प्लांट' किये हुए राष्ट्रपिता थे, ये भी देश का दुर्भाग्य ही था)अपने ही देश के लिए बेगाने हो गए. सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तोआप सब लोगों को ज्ञात होगा ही परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में आज़ादहिंद फ़ौज बनाई गयी थी और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोसने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से सहायता ली थी जो कि अंग्रेजों के शत्रु थेऔर इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे अधिक हानि पहुंचाई थी और जर्मनी के हिटलरऔर इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों के कारण से ये द्वितीयविश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे. एक शत्रु देश कीसहायता से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेजउधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी ओर उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस के कारणसे कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के शत्रु थे |

भारत की संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया जायेगा

भारत की संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया जायेगा अगले 50 वर्षों तक अर्थात 1997 तक. 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस समस्या को उठाया तब जाकर पहली बार इसतथाकथित स्वतंत्र देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गायागया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है

भारत का नाम INDIA रहेगा

भारत का नाम INDIA रहेगा और पूरे संसार में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा तथा सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा. हमारे व आपके लिए ये भारत है परन्तु दस्तावेजों में ये इंडियाहै | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " परन्तु दुर्भाग्य इस महान देश का क़ि ये भारत के स्थान पर इंडिया हो गया. ये इसी संधि के शर्तों में से एक है. अब हम भारतके लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है. भारत जब तक भारत था तब तक तो संसार में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है

भारतीय स्वतन्त्रता कानून 1947 Indian Independence Act 1947

From Wikipedia, the free encyclopedia
The Indian Independence Act 1947 was the statute (10 and 11 Geo VI, c. 30) enacted by the Parliament of the United Kingdom promulgating the partition of India and the independence of the dominions of Pakistan and India. The Act received royal assent on 18 July 1947.
The legislation was formulated by the government of Prime Minister Clement Attlee, after representatives of the Indian National Congress,[1] the Muslim League,[2] and the Sikh community[3] came to an agreement with the Viceroy of India, Lord Mountbatten of Burma, on what has come to be known as the 3 June Plan or Mountbatten Plan.

Passed on 15 June 1947, the Act stipulated that:

* Two independent dominions, India and Pakistan shall be set up in India .
* The dominions would be set up on a fixed date: the fifteenth of August 1947.
* The responsibility as well as suzerainty of the government of the United Kingdom shall cease on fifteenth of August 1947.
* That all Indian princely states shall be released from their official commitments and treaty relationships with the British Empire, and will be free to join either dominion.
*Both Dominions will be completely self-governing in their internal affairs, foreign affairs and national security, but the British monarch will continue to be their head of state, represented by the Governor-General of India and a new Governor-General of Pakistan. Both Dominions shall convene their Constituent Assemblies and write their respective constitutions.

* Both Dominions will be members of the British Commonwealth, but free to leave whenever they please.

* The British monarch shall be permitted to remove the title of Emperor of India from the Royal Style and Titles. King George VI subsequently removed the title by Order in council on 22 June 1948.

हम आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं

इस संधि की शर्तों के अनुसार हम आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं. वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth nations अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Games हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का अर्थ होता है 'सामान्य संपत्ति'. किसकी सामान्य सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की सामान्य सम्पति. आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो. Commonwealth में 71 देश हैं और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है परन्तु भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की आवश्यकता होती है क्योंकि वो दूसरे देश में जा रहे हैं अर्थात इसका अर्थ निकालें तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है अथवा फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होती है यदि दोनों बाते सही हैं तो 15 अगस्त 1947 को हमारी स्वतंत्रता की बात कही जाती है वो मिथ्या है एवं Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है ना क़ि Independent Nation के रूप में. इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अतिरिक्त किसी को भी नहीं. परन्तु ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या अर्थ है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था अर्थात हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है. ये है राजनितिक दासता, हम कैसे मानें क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं. एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक दास देश दुसरे दास देश के यहाँ खोलता है परन्तु इसे Embassy नहीं कहा जाता. एक मानसिक दासता का उदाहरण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के समाचार पत्रों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डायना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |

Dominion States

इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए एवं भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका वास्तविक अर्थ भी यही है. अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" तथा दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं. दुःख तो ये होता है कि उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे अथवा आप कह सकते हैं क़ि पूरी मानसिक जागृत अवस्था में इस संधि को मान लिया अथवा कहें सब कुछ समझ कर ये सब स्वीकार कर लिया एवं ये जो तथाकथित स्वतंत्रता प्राप्त हुई इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act अर्थात भारत के स्वतंत्रता का कानून तथा ऐसे कपट पूर्ण और धूर्तता से यदि इस देश को स्वतंत्रता मिली हो तो वो स्वतंत्रता, स्वतंत्रता है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे. वो नोआखाली में थे और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थेकि बापू चलिए आप.गाँधी जी ने मना कर दिया था. क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई स्वतंत्रता मिल रही है एवं गाँधी जी ने स्पष्ट कह दिया था कि ये स्वतंत्रता नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहाकि मैं भारत के उन करोड़ों लोगों को ये सन्देश देना चाहता हूँ कि ये जो तथाकथित स्वतंत्रता (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था वास्तव में बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही थी) और 14 अगस्त 1947 की रात्रि को जो कुछ हुआ है वो स्वतंत्रता नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में.

ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट

4 अगस्त 1947 की रात्रि को जो कुछ हुआ था वो वास्तव में स्वतंत्रता नहीं आई थी अपितु ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में.Transfer of Power और Independence ये दो अलग विषय हैं.स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग विषय हैं एवं सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में पराजित जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत पश्चात एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को 'ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर' की बुक कहते हैं तथा उस पर हस्ताक्षर के पश्चात पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है एवं पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है.यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात्रि को 12 बजे.लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का अर्थ क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का आशय क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, अर्थात अंग्रेजों ने अपना राज आपको सौंपा है जिससे कि आप लोग कुछ दिन इसे चला लो जब आवश्यकता पड़ेगी तो हम पुनः आ जायेंगे | ये अंग्रेजो की व्याख्या (interpretation) थी एवं भारतीय लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया

समझोते को सार्वजनिक करें

वैसे जहाँ तक मुझे पता है ये समझोता १९९९ तक सार्वजानिक नहीं किया जा सकता था
लेकिन अब कोई प्रतिबन्ध नहीं है
और जब कोई प्रतिबन्ध नहीं है
तो फिर इसको सार्वजानिक करने से कोई भी सरकार कतरा क्यू रही है

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

क्या हम सही में आज़ाद है ????

दोस्तो आज हम सब लोग 15 अगस्त को भारत का स्वधिनता दिवस मानते है
लेकिन क्या कभी हमने जानने की कोशिश करी है कि 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्री को क्या समझोता हुआ था ?
क्या इस कथित आज़ादी के इतने वर्षो में किसी भी भारतीय सरकार ने इस समझोते को सार्वजनिक किया है ???
नहीं ना ?
तो दोस्तो अब समय आ गया है कि हम भारत सरकार से अपील करें कि इस समझोते की सभी शर्तें ओर दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाये
ताकि हम सब लोगो को पता चले कि किन शर्तो ओर समझोतो के तहत हम आज़ाद कहलाते है ???