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रविवार, 23 सितंबर 2012

इस देश की शिक्षा पद्धति कैसा भारत निर्माण कर रही है ?



      आज सुबह समाचार पत्र को उठाते ही एक खबर पर नज़र गयी
            " रोडवेज की प्रतियोगिता परीक्षा के प्रश्न पत्र १ से २ लाख रुपए में परीक्षा से पहले बाजार में बिके|"
      क्या इस देश की प्रतियोगिता परीक्षाओ का स्तर इतना कठिन है या फिर सरकारी नौकरी की चाहत आज कल के युवाओ में इतनी प्रबल है कि वो इसे प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ? इस देश का युवा आज हर प्रकार से सरकारी काम काज का और सरकारी योजनाओं में , सरकारी कर्मचारियों के कार्य के तौर-तरीको में  मीन मेख निकाल रहा है तथा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इतना गरमा रहा है वही इस भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए इतना आतुर दिख रहा है |
       इसके पीछे क्या कारण है ? इसके लिए हमें एकदम मूल में जाना होगा , केवल उपरी तौर से सोचने से काम नहीं चलेगा | इसका मूल कारण है इस देश की शिक्षा पद्धति जो केवल अंको पर , प्रतिशत पर आधारित है और बच्चो और युवाओ को केवल एक ही दिशा में सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे येन केन प्रकरेण इस अंधी दौड़ में उच्चतम प्रतिशत प्राप्त किये जाए और अपने वजूद को स्थायित्व प्रदान किया जाए और इस अंधी दौड़ में माता-पिता भी उनके साथ दौड़ने लगते है |
      इस अंधी दौड़ को रेखांकित करता सिनेमा का एक चलचित्र "थ्री इडियट्स" एक सारगर्भित सन्देश देता हुआ प्रतीत होता है मगर इस सन्देश को केवल मनोरंजन की विधा मान लिया गया है |
       मैंने कई स्थानों पर देखा है कि छोटी मोटी इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रोनिक्स की दुकानों पर या फिर मोटर गेराजो में काम करते हुए कम पढ़े लिखे मगर इस क्षेत्र में  केवल पुस्तकों का अध्ययन कर उच्च अंक प्राप्त करे पढ़े लिखे इंजीनियरों से बेहतर जानकारी रखने वाले कई युवा मौजूद है , मगर हमारे देश की सामजिक व्यवस्था ने उन्हें हाशिये पर डाल रखा है| किसी भी सरकारी उपक्रम या निजी फेक्टरियो में उनकी प्रेक्टिकल योग्यता के अनुसार उसमे रोजगार उपलब्ध नहीं है क्यों कि उनके पास डिग्री नहीं है , यहाँ तक कि उन बड़ी बड़ी कम्पनियों में भी जिनको स्थापित करने वालो ने केवल अपनी प्रेक्टिकल योग्यता के बस पर उनको विकसित किया आज वो भी अपनी फेक्टरियो में, कम्पनियों में युवाओ को रोजगार देने के लिए उनके पास एक कागज़ डिग्री होने की अपेक्षा रखते है, भले ही उसे कार्य आये या नहीं | यहाँ इस बात के विरोध में कहने वाले बोल सकते है कि निजी उपक्रमों में एक बार भले ही डिग्री के बल पर रोजगार पाया जा सकता है मगर बाद में उसकी योग्यता ही उसे उच्च स्तर तक पहुंचाती है , तो यहाँ ये बात उत्तर स्वरुप कही जा सकती है कि मान लो उसने डिग्री के बल पर प्रवेश ले लिया और योग्यता नहीं है तो उसको निकाल बाहर कर दिया गया अब वो युवा मानसिक अवसाद में घिर जाएगा क्यों कि उसने अपनी पूरी मेहनत से इस संस्थान में प्रवेश लेने के लिए अपने बचपन से पुस्तको को रटना शुरू कर दिया था और इस दौड़ में वो अपने आस पास की घटनाओं पर परिदृश्यो पर अपनी प्रतिक्रिया चाहते हुए भी नहीं दे सका क्यों कि उसे एक अदद नौकरी चाहिए थी और जब वही नौकरी उस से छीन गयी तो या तो वो अवसाद का शिकार हुआ और अपने साथ साथ अपने परिवार को भी इस घेरे में ले लिया , या फिर उसने समय के अनुसार अपने आप को बदलने का श्रम किया अब ये बदलाव लाने वाला श्रम करने वाले युवाओ का प्रतिशत मात्र १० % है | 
      वो युवा जो प्रेक्टिकल योग्यता रखता है अपने कार्य के प्रति सुदूर कहीं छोटी मोटी दुकानों में या वर्कशॉप में दिहाड़ी मजदूर के जैसे काम करता हुआ मिल जाएगा |
     इस देश की शिक्षा पद्धति को लार्ड मेकाले द्वारा डिजाइन ही इस रूप में किया गया है कि ये केवल अंधी दौड़ में दौड़ने वाले नौजवान भारत को पैदा करें , ना कि सोचने समझने वाला , हर क्रिया पर प्रतिक्रिया देने वाला नौजवान भारत|
      पुरातन काल में इस देश में इस प्रकार की शिक्षा पद्धति थी कि सामान्य लिपि और अंकगणितीय ज्ञान देने के पश्चात् बालक जिसकी उम्र १०- १५ वर्ष होती थी उस समय जिस क्षेत्र में रूचि रखता था उसे उसी क्षेत्र का ज्ञान दे कर विकसित किया जाता था , यथा  चित्रकारी, युद्ध निति, अर्थनीति , राजनीति, संस्कृत शास्त्री ,  वेदपाठी , आयुध निर्माण , गणितज्ञ , लिपिकार, चिकित्सा   इत्यादि अनेक क्षेत्र थे जो बालक को युवा होने तक उसके पसंदीदा विषय में निपुण कर देते थे | और इसी पद्धति को मेकाले ने देखा और उसे ब्रिटेन में लागू करने के लिए प्रयास शुरू किये और आज भी आप विदेशो में इस प्रकार की शिक्षा पद्धति का वर्तमान स्वरुप देख सकते है|  चूँकि अंग्रेजो को यहाँ अपनी सत्ता निर्बाध रूप से चलानी थी तो उन्होंने सबसे पहला काम यहाँ की शिक्षा पद्धति को समाप्त करने का किया , गुरुकुल पद्धति को तहस नहस कर दिया|
"किसी भी देश पर शासन करना हो या उसे अपना गुलाम बनाना हो तो उस देश के सांस्कृतिक मूल्यों को , उसकी संस्कृति को , उसके इतिहास को नष्ट कर दो| साम्राज्यवादियों का और साम्राज्यवाद फैलाने वालो का यही एक अकाट्य नियम है |"
     और इस नियम को काफी चतुराई से अंग्रेजो ने इस देश पर लागू किया और हम आज भी इसका तोड़ नहीं ढूंढ़ पाए है |
 और इस मेकाले की शिक्षा पद्धति का शिकार हुए हम आज अपने देश के युवाओ की सोच को केवल उसके चारो और बने घेरे तक सीमित कर रहे है | उसे एक वलय रेखा पर चलने वाला युवा बना कर छोड़ दिया है जो केवल स्वयं को और स्वयं के परिवार को स्थायित्व कैसे दे, और उसके बाद अपने बच्चो को? वह उसी वलय में घूम रहा है और आने वाली पीढ़ी को भी केवल उसी वलय पर बिना कदम डिगाए कैसे चला जाए इस बात की शिक्षा दे रहा है |
       अगर हमें इस देश में सम्पूर्ण परिवर्तन करना है तो सबसे पहले "गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया" द्वारा इस देश पर जबरदस्ती थोपी गयी मेकाले की शिक्षा पद्धति को जड़ से उखाड़ कर फेकना होगा | क्यों कि भले ही आप कांटे या कष्ट देने वाले पेड़ की शाखाओ और टहनियों को काट काट कर जलाते रहे , वो फिर से उग आता है जब तक की उसको समूल नष्ट नहीं किया जाता |


       
       
      

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

महानरेगा , विद्यालयों में पोषाहार, निशुल्क शिक्षा , निशुल्क दवाई क्या कोई आपसी सम्बन्ध है इनमे ? इसके पीछे का राज क्या ?

महानरेगा गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया की एक ऐसी योजना जिसने गरीबी को ख़तम नहीं किया वरना गरीबो को आगे बढने से रोक दिया है उनकी सोचने की क्षमता का हनन बड़ी सफाई से कर लिया है , गरीबी को ख़तम कर देंगे तो ये चुनावी मुद्दा कहीं नेपथ्य में गुम हो जाएगा | वर्षा आधारित कृषि प्रधान देश में कृषि तकनीको को प्रोत्साहन देने के बजाये कृषको से ईंट, चुना, सीमेंट , बजरी लगवाया जा रहा है , जहाँ इस देश के आदमी की सोच ये बन गयी है कि सुबह की रोटी मिल जाए और रात की दाल बस बहुत है , और दूसरी और विद्यालयों में दोपहर का भोजन बच्चो को मिल ही जाता है , शिक्षा मुफ्त है , दवाई मिल ही जाती है तो अब काहे को कीच-कीच करें , महानरेगा के रूप में रोटी और दाल का पैसा तो मिल ही जाता है बाकी गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया  मुफ्त दे रही है |
एक आदमी जो अपनी कुशलता को निखार कर विभिन्न कमाई के माध्यमो से  २५० से ५०० रूपये रोज कमा सकता है वो सरकार के रोजगार गारंटी योजना के जाल में उलझ कर रह गया है अपनी क्षमता को पहचानना उसने ख़तम कर दिया है , अरे भाई ये गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया इतनी ही सुधि होती जितना वो प्रदर्शित करना चाह रही है तो गरीबी का ये चुनावी मुद्दा कब का ख़तम हो गया होता | गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया  इतनी ही हितेषी  होती तो विभिन्न घरेलू और कुटीर उद्योगों को ज्यादा प्रोत्साहन देती | अकुशल , अर्धकुशल कामगारों को कुशल कामगारों में परिवर्तन करें इस प्रकार की योजनाये लाती | (कुछ योजनाये चलती है इस बाबत मगर उसका लाभ , लाभार्थी होने वाले व्यक्ति तक कितना पहुँचता है आप सब को पता है , और वास्तविकता लोग जान नहीं पाए तो उसको छुपाने के लिए भी ये योजनाये जरुरी है ) अब महानरेगा योजना के कारण अकुशल, अर्धकुशल, कुशल सब एक है | अगर गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया वास्तव में कुछ इस देश के लिए करना चाहती तो आज इस गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया को स्थापित हुए १६० वर्षो से अधिक का समय हो चूका है और इन वर्षो में उसने सिर्फ इस देश की सम्पदा, संस्कृति और जनता को लुटने का खेल रचा है वो भी इस प्रकार कि कोई सोच ना सके और जब तक सोचने का समय आये सोचने वाले की  उम्र पूरी हो जाए | मगर गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ये नहीं चाहती , इसका उद्देश्य और धेय सिर्फ इतना है कि किस प्रकार इस देश की जनता को मुर्ख बना कर इस पर सतत शासन किया जाए पहले गोरे थे अब अब उनके एजेंट है , मालिक तो कहीं और बैठा है और इस प्रकार की नीतियों का निर्धारण और योजनाओं का विकास कर रहा है कि इस देश कि जनता सिर्फ महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों की उपरी सतह पर ही हो हल्ला करती रहे और वास्तविकता को कभी जान ना पाए |

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का सन्देश

मेरे शरीर की भांति, मातृभूमि भारत को बाँटकर खड़ा किये गए पाकिस्तान और हिंदुस्तान में रहने वाले प्यारे भाइयो और बहनों !
अपना सन्देश देने के साथ साथ सर्वशक्तिमान परमात्मा से मैं प्रार्थना करता हूँ कि उन विकृत आत्माओ को वह शुद्ध और पवित्र विचार दे जिन्होंने मेरी मृत्यु स्थापित करने जैसे विकृत कृतकार्य करते हुए वर्ष १९५६ में जांच सिमिति का गठन किया था , और इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए और समितियों का गठन किया| यह जांच समितियों से उत्त्पन होने वाले विकराल परिणामो के बारें में पूर्ण रूप से अवगत हूँ| इन जांच समितियों का मूल उद्देश्य और लक्ष्य सिर्फ मेरी गतिविधियों के स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त करने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है |
लेकिन मेरे प्यारे देशवाशियो ! आप तो जानते है हो कि धूर्त अंग्रेज और उनके सहयोगियों की आँख में मैंने धुल झोंकी थी| अत: निश्चित रूप से आप इतना समझ लो कि विश्व के सबसे चतुर राजनितज्ञ शाही अंग्रेज शासको की आँख में जिस व्यक्ति ने धूल झोंकी थी उसको विश्व का कोई भी गन्दा राजनीतिज्ञ धोखा नहीं दे सकता |
निराश मत हो लम्बी रातें समाप्त हो रही है | और वह शुभ घडी तेजी से नजदीक आती जा रही है| अनंत आत्म विश्वाश और अनंत धेर्य सफलता की कुंजी है| विश्व का इतिहास वास्तव में उन चंद लोगो का इतिहास है जिनके अन्दर आत्म विश्वाश भरा है और उसी आत्म विश्वाश के कारण मुष्य के अन्दर देवी शक्ति उदय होती है |

प्यारे देशवाशियो! अन्याय और बुराइयों से समझोता करके , अपने अस्तित्व को बनाए रखना मुझे पसंद नहीं है और शाही नीतियों से मैं कभी समझोता नहीं कर सकता | मेरे लिए वे सारे लोग शाही परम्परावादी है जिन लोगो ने मेरी मातृभूमि का बंटवारा करवा कर उसे स्वीकार किया और खंडित भारत की अवैध सरकार से हाथ मिला लिया और निहित स्वार्थो की पूर्ति हेतु इस राष्ट्र विरोधी संविधान के तहत चुनाव लड़ते है|
प्यारे देशवाशियों ! एशियाई देशो को एंग्लो-अमेरिकेन शक्तियों से बाहर निकालने में ही भारत की पूर्ण आज़ादी और सुरक्षा निहित है | इस प्रतिस्पर्धा के युग में शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि खंडित भारत को पुन: अखंड बनाया जाए|
खंडित भारत के भोले भाले लोग मेरे कार्यक्रम और बारीकियो को कैसे समझ सकते है जबकि अपने को चतुर समझने वाले मेरा पीछा करने में असफल रहे है | आपकी अज्ञानता के कारण बर्बर अंग्रेजो ने आपके ऊपर जिस तरह १५० वर्षो तक हुकूमत की थी उसी प्रकार ये काले तुच्छ अंग्रेज किस्म के लोग, आपकी अज्ञानता और भोलेपन का नाजायज लाभ उठाने और अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आज तुम्हारे ऊपर राज कर रहे है |
लेकिन मेरे शब्दों को अच्छी तरह समझ लो | जिस प्रकार आज़ाद हिंद सैनिको ने बर्बर अंग्रेजो को भारत की भूमि से बाहर निकालने में कुरबानिया दी थी जिसकी फलस्वरूप खंडित भारत देश को कुछ आज़ादी प्राप्त हुई थी | ठीक उसी प्रकार एक "दूसरी सेना" इन काले अंग्रेजो को भारत भूमि से निकाल बाहर कर, भारत भूमि को मुक्ति दिलवाएगी|
प्यारे देशवाशियो! पतवार को अपने हाथ से बाहर मत जाने दो , इसे अच्छी तरह हाथ में पकड़ कर रखो | मेरी दिशा सही और शुद्ध है | सही छोर पर पहुंचना अब सिर्फ थोड़े समय की बात है| विश्वाश रखो| जिस रहस्य को मैंने बना रखा है उसे मैं ही खोलूँगा उसका दुसरे लोग पर्दाफाश नहीं कर सकते|
इस दौरान यदि आप सचमुच मेरे रहस्यों को जानने हेतु सचमुच उत्सुक है, तो आप शांत सत्याग्रह करते हुए अपनी मांगो को उठाते रहे| मेरे जीवित होने या मेरे मरने के बारे में या मैं अभी भी युद्ध अपराधी हूँ आपको बिलकुल भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है |
खैर ! आज़ादी का ज्वार पुन: उठ गया है और इस जवार को कोई रोक नहीं सकेगा| आप अपनी अवैध सरकार की रगों को , जन आन्दोलन के जरिये उजागर कर सकते है , तब आप देखेंगे कि आपके शासक और राजनैतिक जुआरी पुन: एकजुट होकर बन्दुक और बट की नोक के जरिये आपको दबायेंगे | हालाकिं उस संघर्ष में विजय आपकी ही होगी|
अपने इस सन्देश के अंत में मेरा आपसे आग्रह है कि अपने अन्दर की इर्ष्या और द्वेष पूर्ण भावो को समाप्त कर करें और साथ ही साथ जातिवाद और निहित स्वार्थो को मिटा कर एक लक्ष्य को लेकर काम करें|
        प्रार्थना करता हूँ कि माँ आपके हाथ और दिमाग को स्वयं शक्ति दे | आप सबको मेरा ढेरो ढेरो प्यार | जय हिंद!
आपका - जनहित के लिए सर्वस्व त्याग करने वाला |

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

क्या सुभाष मर गया है ? Is Subhash No More?

यहाँ में एक बात आप सब से कहना चाहूँगा ........ ये सर्वविदित सत्य है कि प्लेन क्रेश जैसा की कहा जाता है कभी हुआ ही नहीं था ..... और सभी नेताजी को प्यार करने वाले इस बात को जानते है और जो बाकी लोग नहीं जानते थे वो अनुज धर की किताब पढ़ कर समझ जायेंगे और काफी लोग पढ़ कर इस सच्चाई को जान चुके है, इस बात के लिए अनुज धर बधाई के पात्र है!
अब प्रश्न ये है कि उस समय १९४६ में गांधी जी ने अपनी "अंतरात्मा की आवाज़ पर" कहा कि मुझे लगता है सुभाष मरा नहीं है वो जीवित है (वैसे उनके पास प्रमाण था कि वो जीवित है, मगर सार्वजनिक नहीं हुआ था , अनुज धर ने उस से सम्बंधित डोकुमेंट (वो प्रमाण नहीं जो गाँधी जी के पास था) प्रयासों से प्राप्त किया, उस समय जब गांधी जी ने ये बात कही तो काफी लोगो को विश्वाश हुआ और काफी लोगो को नहीं भी हुआ और जिनको विश्वाश नहीं हुआ वो प्रमाणों की मांग करने लगे, उस समय के कुछ लोग जो आज जीवित है या जिन्होंने अपने पुरखो से ये बात सुनी है कि गांधी जी ने एक बार कहा था कि सुभाष जीवित है मगर हम बिना प्रमाण के उनकी बात कभी नहीं मानी , वो आज शायद अनुज धर की रिसर्च पढ़ कर विश्वाश करने लगे होंगे , बात उनको पता थी कि किसी ने कहाँ था कि नेताजी जीवित थे १९४६ तक, मगर उस बात पर विश्वाश उनको अनुजधर की रिसर्च पढ़ कर हुआ ......... अब देखा आपने काफी समय लग गया उनको विश्वाश दिलाने में की नेताजी जीवित थे उस समय तक या कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी, 

वैसे ही आज भी कुछ लोग बोल रहे है कि "सुभाष आज भी जीवित है!" मगर वो कुछ लोग इन गुलाम साहित्यकारों के महिमा मंडित किये हुए गांधी, नेहरु नहीं है तो बात को हलके में लिया जाता है और ये स्वाभाविक है एक साधारण मानव के लिए इसमें उसका दोष नहीं. वो भी प्रमाण मांगते है कि बताओ कहाँ है वो ? सामने क्यू नहीं आते ? डरते है क्या ? उनको किसी का क्या डर? अगर जिन्दा है तो काफी वृद्ध हो गए होंगे ? इतनी उम्र तक कोई इंसान कैसे जिन्दा हो सकता है ?
ये प्रश्न जायज है एक साधारण मानव के लिए, अब रही बात प्रमाणों कि तो जब गांधी ने १९४६ में जो बात कही उसकी प्रमाणिकता जनता के सामने सिद्ध करने में इतना समय लगा तो आप लोग थोडा इंतज़ार और क्यू नहीं करते ? प्रमाण भी मिलेंगे ,हर बात का एक निश्चित समय निर्धारित है और समय आने पर इन सभी सवालो के जवाब भी मिलेंगे!
इसलिए मेरा आप सब से अनुरोध है कि समय का इंतज़ार कीजिये 
 
 (यहाँ मेरी बात कहने में मैंने गांधी का उद्धरण इसलिए लिया है कि हमारे गुलाम देश के गुलाम साहित्यकारों ने "कुछ लोगो" को इतना महिमा मंडित कर दिया है कि अगर वो प्रकुति के नियम विरुद्ध भी कुछ बात बोल दे तो उसको प्रमाणिक मानते है)

क्या नेहरु की म्रत्यु शैया के निकट नेताजी थे या वीरा धर्मवीरा ?


राजकीय या राष्ट्रीय

दोस्तों .... असीम त्रिवेदी के घटनाक्रम पर गौर करते हुए में गवर्मेंट ऑफ़ इण्डिया की अधिकारिक वेबसाईट पर पंहुचा और वहाँ राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में देखा
मगर मुझे वहां एक बात पर "खटका" लगा और वही बात में आप से शेयर करना चाहता हूँ वो बात ये है कि सरकार जिस को "राष्ट्रीय प्रतीक " बता रही है यानी कि अशोक स्तम्भ को वही सरकार उसको अपनी वेबसाईट में "राजकीय प्रतीक " बताती है , बाकी सभी चिन्ह के आगे राष्ट्रीय लिखा हुआ है उस वेबसाईट में, मगर अशोक स्तम्भ के आगे "राजकीय" लिखा हुआ है , अब आप में से कोई ये बताये कि "अशोक स्तम्भ राष्ट्रीय प्रतीक है या राजकीय", क्या राष्ट्रीय और राजकीय दोनों का अर्थ एक ही होता है ? अगर अलग अलग होता है तो फिर सरकार या आप में से कोई सज्जन ये स्पष्ट करे कि उसकी आधिकारिक वेबसाईट पर उसको राजकीय प्रतीक क्यों लिखा गया है ?
फिर जैसे ही मैंने उस से सम्बंधित एक्ट की फ़ाइल ओपन करी तो उस एक्ट की पहली ही पंक्ति ये थी :-
THE "STATE EMBLEM OF INDIA" (PROHIBITION OF IMPROPER USE) ACT, 2005"
No. 50 of 2005 (20th December, 2005)
फिर प्रश्न यही आया कि यहाँ STATE की जगह National क्यों नहीं लिखा गया है?
 
तो दोस्तों मैं जरा राजकीय और राष्ट्रीय की परिभाषा में कमजोर हूँ तो कोई क्या बता सकता है ये ऐसा क्यू है ?

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

राजेश्वरी आर्या से साभार

नेताजी निष्कलंक और पवित्र,
गांधीजी लांछनों से परिपूर्ण और विचित्र।
नेताजी निर्मल हृदय और उदार,
गांधीजी ईर्ष्यालु और अनुदार।
नेताजी निर्भय और निर्भीक,
गांधीजी कायरता प्रतीक।

नेताजी ने गांधीजी को कभी अस्वीकार
नहीं किया,
गांधीजी ने
किसी क्रांतिकारी को कभी स्वीकार
नहीं किया।

नेताजी का अर्थ है देशभक्ति और क्रांति,
गांधीजी का अर्थ है कनफ्यूजन और भ्रांति।
नेताजी सभी स्तरों पर स्पष्ट हैं,
गांधीजी स्वयं संशयग्रस्थ हैं।

नेताजी का जीवन निरंतर संघर्ष,
गांधीजी के लिए पलायन ही आदर्श।
नेताजी टूट गए पर झुके नहीं,
गांधीजी किसी चुनौती के सामने कभी टिके
नहीं।

नेताजी की वीरता से भारत छोड़ गए अंग्रेज़,
गांधीजी की कायरता से देश को तोड़ गए
अंग्रेज़।
नेताजी की देन है गौरव और स्वाभिमान,
गांधीजी की देन है नेहरू और पाकिस्तान।

2 अक्तूबार धोखा है छलना है,
23 जनवरी की भी कहीं कोई तुलना है? ??
नेताजी की भावना उत्तरोत्तर प्रचंड हो,
नेताजी की भारत माता फिर से अखंड हो।


@ Thanks to Rajeshwari

POST – PARTITION INDIA’S SO CALLED CONSTITUTION REPUBLIC AND INDEPENDENCE (PART II)

Continue from Ist Part......................

The foreign policy of India is run in close association with the foreign office of British government of London. A British Govt. Pamphlet named the Commonwealth in Brief (Published in 1995) says:- "The commonwealth relations office is the main channel in the United Kingdom through which information on every possible subject of mutual interest is received from and communicate to the department of external affairs of the other members of the Commonwealth where foreign policy is concerned . The commonwealth relations office work in close association with the Foreign Office.

The development plan of India, Pakistan, Ceylon, Malaya and other British territories in South and South East Asia are prepared in persuance of the policy of British government. The Commonwealth Prime Ministers decided in their meetings held in 1946 and 1948 that "with a view to check the rising influence of communism" the said part of Asia be developed. For this purpose a meeting of the Commonwealth foreign ministers was held in January 1950 at Colombo . There a consultative committee was set up to enolve a scheme of development. The comm
ittee held their meeting in May 1950 at Sydney(Australia). That committee made a recommendation on the lines of which plans were prepared by the above named countries and as directed by the same committee they were submitted to the meeting of commonwealth government in London on September 25, 1950. There the plan were finally approved. for detailed information readers should go through the proceedings of the above referred meetings.

The whole property of India-land, coinage, Bank notes, Currency notes and property of every other sort vest in the British sovereign wide order No. 18 named as the "
Indian Independence (rights, property and liabilities) orders 1947. It is dated the 14th August, 1947. "It was made by Lord Mountbatten under section(9) of the Indian Independence Act. 1947. This order stands valid in the republic of India.
To be Continue....................................

POST – PARTITION INDIA’S SO CALLED CONSTITUTION REPUBLIC AND INDEPENDENCE (PART 1)

Make analytical as well as paraphrastic perusal of the pillars of constitution of post partition India and her republic. the setting up in India of a republican form of government is an “act of the British policy”. Responsible government and republican government are Co-Terminus phrases. On August 20,1917 Lord Montagu, the then secretary of state for India, announced : - “The policy of His Majesty’s Govt. with which the government of India is in complete accord is increasing the association and the gradual development of self governing institutions with a view to the progressive realization of responsible government in India as an “Integral part of the British Empire.”
In 1947 or round about that some changes were made in terminology of the words. India was made “a republic on Jan 26,1950 in persuance of the announcement of the policy of His Majesty’s in the house of commons” on August 20, 1917 by Mr. Mantagu, the then secretary of state for India. “To open the door of the structure of British Empire for setting –up a republic within it a few terms were evolved in a meeting of the common-wealth Prime Ministers held in London” in April 1949. on the conclusion of the meeting a joint declaration with the approval of His Majesty, the King, was issued on April 27, 1949. As incorporated in the declaration, the P
rime Minister of divided India (Discovered By Nehru) Sriman Nehru, on behalf of the Govt. of divided India declared and affirmed India’s desire (1) to continue her full membership of the commonwealth of nations (2) to continue her full acceptance of the King as symbol of the free association of the independent member nations and as such the head of the Commonwealth (3) to remain united as free and equal member with the other members of commonwealth and co-operate with them in persuit of peace, liberty and progress. “Commonwealth is synonymous with the British Empire and commonwealth association is an association within the British Empire (Commonwealth) of self-governing units of the said Empire.” Dominion was replaced by member nations of the commonwealth and British Empire by Commonwealth of Nations or commonwealth. A British government pamphlet named “What is the Commonwealth” Published in 1956 says: “For a long time term “British Empire” was used and the self governing countries (other then the UK) was called Dominion. These terms have now given place to commonwealth or commonwealth of nations and member nations of commonwealth”. Encyclopedia Britannica of 1953 and 1955 may be looked into on this point.
The question is “Why is India described as dominion if she is not
one? And it is known to all that the republic of India continues to be member nation of commonwealth, “The head of which is the British Queen.” 


To be continue ………………..

रविवार, 10 जून 2012

गोऊ हत्या पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं ? क्यों बंद नहीं होता गोऊ मांस का निर्यात बंद ?


दोस्तों ये एक कडवी सच्चाई आप के सामने पेश कर रहा हूँ .. .. 
जैसा कि आप सब जानते है अंग्रेजो द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करते वक्त कुछ शर्ते थोपी गयी थी और उन शर्तो को 
हमारे सत्ता लोलुप नेताओ ने मान कर हस्ताक्षर कर  दिए थे !
और आप ये भी जानते है कि इन शर्तो की गोपनीयता १९९९ तक अक्षुण रखने की बात भी हुई थी और अब वर्तमान में ये प्रतिबन्ध २०२१ तक के लिए बढ़ा दिया गया है !
दोस्तों! जब भी कोई द्विपक्षीय समझौता होता है तो समझौते की शर्तो का किसी भी प्रकार से उलंघन नहीं किया जा सकता और खास कर के जब समझोता मालिक और गुलाम के बीच हो तो गुलाम द्वारा तो कदापि नही !
तो उन शर्तो में एक शर्त ये भी थी कि ब्रिटेन को एक निश्चत मात्रा में गोऊ मांस का निर्यात जब तक ये समझौता कायम है किया जाता रहेगा और (आपको पता ही होगा जब अंग्रेज भारत में आये तो सबसे पहले कलकत्ता में उन्होंने कत्लखाना शुरू किया था ) इस समझौते का उलंघन गुलाम द्वारा कभी नहीं किया जा सकता !
हाल ही एक रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत गोऊ मांस निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है ... आश्चार्य है ना ? 
जब पुरे देश से मांग उठा कर अलग अलग संगठन गोऊ मांस और गोऊ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाना चाहते है तो क्यों इस कठपुतली सरकार के कान पर पर जूं  नहीं रेंगती ? कारण साफ़ है ....... 
तो जब तक हमें पूर्ण स्वतंत्रता यानी पूर्ण स्वराज्य प्राप्त नहीं होता ........ आप लोग कितना ही जोर लगा ले गोऊ हत्या और गोऊ मांस पर ये प्रतिबन्ध नहीं लगाने वाले 

हम भी इस सरकार से मांग करते है कि " जल्द से जल्द इस समझौते की सभी शर्तो को सार्वजनिक किया जाए" और जो देश हित में नहीं है उनको  तुरंत प्रभाव से हटा दिया जाए ! आगे की आगे देखेंगे  

धन्यवाद! जय हिंद ! 

बुधवार, 6 जून 2012

भारत की गुलामी सिद्ध करने वाले संवेधानिक एवं विधिक तथ्य 2

११- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४७ के तहत भारत के समस्त उच्च न्यायलय तथा सर्वोच्च न्यायलय भारतीय संविधान के निर्वचन के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा पास किये गए २ अधिनियम को मानने के लिए बाध्य है


१२- यह कि इण्डिया गेट का निर्माण भारत के उन गुमनाम सेनिको की याद में किया गया था जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए अपनी जान दे दी थी ना कि भारत की रक्षा के लिए ..... इस अंग्रेजी सेना के सैनिको को आज भी हमारे रास्त्रपति और प्रधानमंत्री श्रधान्जली अर्पित करते है तथा भारत की रक्षा में अपनी जान गवां देने वाले वीरो के स्थल अभी भी उपेक्षित और वीरान है 

१३- यह कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा ३७,४७,८१ तथा ८२ के तहत भारत के सभी न्यायलय आज भी ब्रिटिश संसद द्वारा पास किये गए कानूनों तथा ब्रिटेन के न्यायालयों के निर्णय को मानने के लिए बाध्य है 

१४- यह कि साधारण खंड अधिनियम की धारा ३(६) के तहत भारत आज भी ब्रिटिश कब्ज़ाधीन क्षेत्र है 

१५- यह कि राष्ट्रमंडल नियमावली की धारा ८, ९, ३३९, तथा ३६२ के अनुसार भारत ब्रिटिश साम्राज्य का स्थायी राज्य है तथा भारत को अपने आर्थिक निर्णय ब्रिटेन के मापदंडो के अनुसार ही निश्चित करने पड़ते है


दोस्तों इन सब बातो के आलावा और भी बहुत सी बातें है ........ जिनसे प्रमाणित होता है कि पूर्ण स्वराज्य की मांग हमारी आज तक पूरी नहीं हुई है 
हम आज भी आधी अधूरी आजादी को पूर्ण स्वतंत्रता मान कर जी रहे है 

जिस गुप्त समझोते के आधार पर कुछ लालची नेताओ के द्वारा भारत की अधूरी आज़ादी स्वीकार कर ली गयी थी उसकी अवधि सन १९९९ में पूरी हो चुकी थी लेकिन १९९९ में कुछ स्वार्थी नेताओ के द्वारा इस समझोते को २०२१ तक के लिए गुप्त रखने के संधि कर ली गयी 

और इस गुप्त समझोते के विवाद को निपटाने का अधिकार भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका को भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद १३१ के तहत नहीं है

भारत की गुलामी सिद्ध करने वाले संवेधानिक एवं विधिक तथ्य 1

भारत की गुलामी सिद्ध करने वाले संवेधानिक एवं विधिक तथ्य 

१- ये कि भारत का राष्ट्रपति १५ अगस्त १९७१ तक भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं लगाता था
२- यह कि ब्रिटेन का १० नवम्बर १९५३ का एक पत्र जिसका क्रमांक F - 21 - 69 / 51 - U .K . है जिस पर अंडर सेकेट्री के. पि. मेनन के हस्ताक्षर है उसमे स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारत के गणराज्य हो जाने के बाद भी ब्रिटिश नेशानालिटी एक्ट १९४८ की धारा A ( १ ) के तहत भारत का प्रत्येक नागरिक ब्रिटिश विधि के आधीन ब्रिटेन का विषय है


३- यह कि भारतीय संविधान की अनुसूची ३ के अनुसार भारतीय संविधान की स्थापना विधि (ब्रिटिश) के द्वारा की गयी है ना कि भारत के लोगो द्वारा 

४- भारतीय संविधान की उद्देश्यिका के अनुसार भारतीय संविधान को भारत के लोगो ने इस संविधान को मात्र अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्त्मर्पित किया है .....
इसका निर्माण व् स्थापना नहीं 



५- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद १२ के तहत भारत को एक राज्य कहा गया है राष्ट्र नहीं अतः सिद्ध होता है कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक राज्य है न कि एक स्वतंत्र राष्ट्र ( इसकी पुष्टि govt . ऑफ़ इण्डिया की वेबसाइट पर भी होती है जहाँ जिसे हम आज तक राष्ट्रीय चिन्ह पढ़ते आये है उसे राजकीय चिन्ह लिखा हुआ है )
http://india.gov.in/knowindia/national_symbols.php?id=9


६- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद १०५(३) तथा १९४(३) के तहत भारत की संसद तथा राज्य की विधान सभाएं ब्रिटिश संसद की कार्य पद्धति के अनुरूप ही कार्य करने के लिए बाध्य है 

७- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ७३(२) के अनुसार संघ की कार्यपालिका देश की तथाकथित आजादी के बाद उसी प्रकार कार्य करती रहेगी जैसे आजादी से पूर्व गुलामी के समय करती थी 

८- यह कि भारत के संवेधानिक पदों पर आसीन सभी व्यक्ति भारतीय संविधान की अनुसूची ३ के तहत विधि (ब्रिटिश) द्वारा स्थापित भारतीय संविधान के प्रति वफादारी की शपथ लेते है ना कि भारत राष्ट्र या भारत के नागरिको के प्रति वफादारी की


९- यह कि भरिय संविधान के अनुच्छेद १ में भारत को इण्डिया इसलिए कहा गया है कि आज भी ब्रिटेन में भारत को नियंत्रित करने के लिए एक सचिव नियुक्त है जिसे भारत का राष्ट्रमंडलीय सचिव कहा जाता है जो कि भारतीय सरकार के निर्णयों को मार्गदर्शित तथा प्रभावित करता है 

१०- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३७२ के तहत भारत में आज भी ११ हज़ार से भी अधिक वह सभी अधिनियम, विनिमय, आदेश, आध्यादेश, विधि , उपविधि आदि लागू है जो गुलाम भारत में भारतीयों का शोषण करने के लिए अंग्रेजो द्वारा लागु किये गए थे 

रविवार, 6 मई 2012

अभी तो युद्ध शेष है

अभी तो युद्ध शेष है ,अभी तो युद्ध शेष है
विशाल चक्रव्यूह में हुवा अभी प्रवेश है
अभी तो युद्ध शेष है...........


कुरीति पर प्रहार है,निःशब्द तीव्र वार है
समग्र क्रांति का पुनः ,उदय हुवा विचार है
विशेषता को छोड़ कर ,निकल पड़ा विशेष है
अभी तो युद्ध शेष है..............


ये अस्मिता का युद्ध है,अनीति के विरुद्ध है
निः शस्त्र सैन्य साथ ले ,प्रयाण पर प्रबुद्ध है
ये राष्ट्र शुद्धी यज्ञ का,पवित्र श्री गणेश है
अभी तो युद्ध शेष है.....................


विचर रहे हैं जो निडर ,उगल रहे हैं जो जहर
हृदय में अग्नि जल उठी ,है विषधरों को देखकर
सुसुप्त था अभी तलक ,सजग हुवा खगेश है
अभी तो युद्ध शेष है..........................


अभी तो है प्रथम चरण ,हुवा है राष्ट्र जागरण
पुनीत शंखनाद से ,चकित है भ्रष्ट आचरण
है अन्धकार थक गया ,निकल रहा दिनेश है
अभी तो युद्ध शेष है........................

निरख अतुल्य सारथी,विकल हुवे महारथी
है देखना बुझे नहीं ,ये जागरण की आरती
समय के पृष्ठ पर लिखा ,ये क्रांति का सन्देश है
अभी तो युद्ध शेष है..........................


सुबह का धैर्य चुक गया,है अन्धकार झुक गया
हवा का रंग देख कर, ये कालचक्र रुक गया
निकल पड़ो बहादुरों ,पुकारता स्वदेश है
अभी तो युद्ध शेष है...................

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

आज इस भावना की फिर से जरुरत है


हम है इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रू हानियत से, रौशन है जग सारा;
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमन की धारा।
ऊपर बर्फ़ीला पर्वत, पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता, सागर का नकारा;
इसकी खानें उगल रही, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शानो शौकत का, दुनिया में जयकारा।
आया फ़िरंगी दूर से, रेग्सा मन्तर मारा,
लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा;
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा।
हिन्दू, मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
ये है आजादी का झन्डा, इसे सलाम हमारा।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

" केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य " के मामले में भारतीय संविधान

जैसा कि उच्चतम न्यायलय की १३ जजों की संविधान पीठ ने वर्ष १९७३ में " केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य " के मामले में भारतीय संविधान के बारे में कहा है कि भारतीय संविधान, स्वदेशी उपज नहीं है और भारतीय संविधान का स्त्रोत भारत नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संवेधानिक संस्थाए भी तो स्वदेशी उपज नहीं है और न ही भारत के लोग इन संवेधानिक संस्थाओ के श्रोत ही है

उपरोक्त वाद में उच्चतम न्यायलय के न्यायधिशो ने भारत के संविधान के श्रोत तथा वजूद की चर्चा करते हुए कहा है कि
१- भारतीय संविधान स्वदेशी उपज नहीं है
- जस्टिस पोलेकर
२- भले ही हमें बुरा लगे परन्तु वस्तुस्थिति ये है कि संविधान सभा को संविधान लिखने का अधिकार भारत के लोगो ने नहीं दिया था बल्कि ब्रिटिश संसद ने दिया था . भारत के नाम पर बोली जाने वाली संविधान सभा के सदस्य न तो भारत के प्रतिनिधि थे और न ही भारत के लोगो ने उनको ये अधिकार दिया था कि वो भारत के लिए संविधान लिखे - जस्टिस बेग

३- यह सर्व विदित है कि संविधान की प्रस्तावना में किया गया वादा ऐतिहासिक सत्य नहीं है . अधिक से अधिक सिर्फ ये कहा जा सकता है कि संविधान लिखने वाले संविधान सभा के सदस्यों को मात्र २८.५ % लोगो ने अपने परोक्षीय मतदान से चुना था और ऐसा कौन है जो उन्ही २८.५% लोगो को ही भारत के लोग मान लेगा - जस्टिस मेथ्हू

४- संविधान को लिखने में भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और न ही कोई योगदान - जस्टिस जगमोहन रेड्डी


उच्चतम न्यायालय के १३ जजों की संविधान पीठ में मात्र एक जज जस्टिस खन्ना को छोड़ कर अन्य १२ जजों ने एक मत से ये कहा था कि, भारतीय संविधान का श्रोत भारत के लोग नहीं है बल्कि इसे ब्रिटेन की संसद द्वारा भारतीयों पर थोपा गया है

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 8

काबिले गौर बात है कि यदि ब्रिटिश संसद की ये नियति होती कि तत्कालीन "संविधान सभा " इन्डियन डोमिनियन के लिए संविधान लिखे , तो धारा ८ में स्पष्ट उल्लेख होता जैसा कि धारा ६ में कानून बनाने के विषय में स्पष्ट उल्लेख है

बल्कि सत्य तो ये है कि इस संविधान को भारत के लोगो से पुष्ठी भी नहीं करवाया गया है , बल्कि संविधान में ही धारा ३८४ की धारा लिखकर , उसी के तहत इसे भारत के लोगो पर थोप दिया गया है जो अनुचित , अवैध और अनाधिकृत है

इस तरह अनाधिकृत लोगो द्वारा तैयार किये गए संविधान के तहत कार्यरत सभी संवेधानिक संस्थाएं अनुचित , अवैध और अनाधिकृत है जैसे --- संसद , विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आदि जिसे बनाने में भारत के लोगो की सहमति नहीं ली गयी है


संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 7

इस प्रकार इण्डिया का शासन प्रबंध करने हेतु १५ अगस्त १९४७ को स्थिति ये थी -----

१- थोड़े समय के लिए कार्यपालिका की जिम्मेदारी का निष्पादन करने हेतु सितम्बर १९४६ में स्थापित जो अंतरिम सरकार थी , वो पंडित नेहरु के नेतृत्व में सर्वदल समर्थित थी। इस प्रकार के गठन में भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और ना ही कोई योगदान था

२- विधायिका की जिम्मेदारियों का निष्पादन करने हेतु जुलाई १९४६ में गठित "संविधान सभा" को थोड़े समय के लिए प्रोविजनल संसद की मान्यता मिली थी . जुलाई १९४६ में गठित "संविधान सभा" के गठन में भी आज़ाद भारत के लोगो की न तो कोई भूमिका थी और न ही कोई योगदान .
आज़ाद भारत के लोगो ने उक्त संविधान सभा को न तो चुना ही था और न ही उसे अधिकृत किया था कि वे लोग भारत के लोगो के लिए संविधान लिखे .

संविधान लिखने के लिए योजनाये बनाने हेतु ब्रिटिश संसद कृत " भारतीय सवतंत्रता अधिनियम -१९४७" की धारा ३ के तहत संविधान सभा को अधिकृत किया गया था

३- फेडरल कोर्ट को उच्चतम न्यायालय की जिम्मेदारियों के निष्पादन करने हेतु अधिकृत किया गया था

४- भारत के लोगो को उसी
" भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -१९४७ " के अंतर्गत ही राजनितिक लोगो को मात्र चुनने का अधिकार दिया गया था

इस प्रकार स्पष्ट स्थिति ये है कि १९४६ में गठित संविधान सभा को आज़ादी के बाद , ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था कि वे अपने अर्ध राज्य के लिए संविधान बनाने हेतु उचित व्यवस्थ करें जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश संसद द्वारा अधिकृत किया गया था भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम की धारा ८ देखें ---------- धारा ८ के तहत , संविधान सभा को को सिर्फ इसके लिए अधिकृत किया गया थ कि वो इंडियन डोमिनियन के लिए , संविधान लिखने हेतु जरुरी ओप्चारिक्ताओ कि मात्र तैयारी करेंगे ना कि खुद संविधान लिखने लगेंगे

ये स्थिति १९४७ के अधिनियम की धारा ६ से और स्पष्ट हो जाती है क्योंकि धारा ६ के अंतर्गत दोनों अर्धराज्यों की संविधान सभा को मात्र कानून बनाने के लिए पूर्ण अधिकार दिया गया था

और ये सर्वविदित और स्थापित नियम है कि
" कानून बनाने वाला संविधान नहीं बनाता है "

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 6

इस बीच मुस्लिम लीग की बंटवारे की मांग और उसके समर्थन में "सीधी कार्यवाही योजना" के कारण देश की कानून व्यवस्था तो बिगड ही गयी थी, साथ ही राजनेतिक परिस्थितिय तेजी से बदल रही थी । मार्च १९४७ में माउन्टबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया और वो भारत आते ही बंटवारा और सत्ता हस्तांतरण की योजना बनाने लगा

इसके पहले कि संविधान सभा अपने निर्धारित कार्यक्रम संघीय भारत का संविधान बनाने का कार्यक्रम पूरा करती ३ जून १९४७ को भारत का बंटवारा मंजूर कर लिया गया और भारत के बंटवारे को पुरा करने के लिए ब्रिटिश संसद ने " भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -१९४७ " को पास करके १५ अगस्त १९४७ को इण्डिया - पाकिस्तान के रूप में दोनों को अर्धराज्य (dominion) घोषित कर दिया

अर्धराज्य इसलिए घोषित कर दिया कि जब तक दोनों देश अपने लिए संविधान बना कर , उसके तहत अपना शासन प्रबंध प्रारंभ नहीं कर देते हैं तब तक इण्डिया - पाकिस्तान का शासन प्रबंध ब्रिटिश संसद कृत " भारत शासन अधिनियम -१९३५" के तहत ही चलता रहेगा


संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 5

९ दिसंबर १९४६ को संविधान सभा की पहली बैठक बुलाई गयी जिसमे राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष चुना गया
१३ दिसंबर १९४६ को संविधान की प्रस्तावना को पेश किया गया, जिसे २२ जनवरी १९४७ को स्वीकार किया। इस बैठक में कुल २१४ सदस्य उपस्थित थे, अर्थात ३८९ सदस्यों वाली विधान में कुल ५५% सदस्यों ने ही संविधान की प्रस्तावना को स्वीकार कर लिया, जिसे संविधान की आधारशिला माना जाता है, उसी १३ दिसंबर १९४६ की प्रस्तावना को, बंटवारे के बाद, आज़ाद भारत के संविधान की दार्शनिक आधारशिला के रूप में स्वीकार किया गया है

ध्यान देने की बात है कि २२ जनवरी १९४७ को, संविधान की प्रस्तावना के जिस दार्शनिक आधारशिला को स्वीकार किया गया था उसे अखंड भारत के संघीय संविधान के परिप्रेक्ष्य में बनाया गया था वह भी इस आशय से कि इसे ब्रिटिश सरकार की स्वीकृति अनिवार्य थी क्यों कि २२ जनवरी १९४७ को भारत पर अंग्रेजी संसद का ही हुकुम चलता था

यह भी काबिले गौर है कि २२ जनवरी १९४७ कि संविधान सभा कीबैठक में, देशी रियासतों के मनोनीत सदस्य तथा मुस्लिम लीग के ७२ निर्वाचित सदस्य उपस्थित नहीं थे

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 4

मुस्लिम लीग की " सीधी कार्यवाही योजना " को सर्वप्रथम बंगाल में चलाया गया जहाँ सुरहरावर्दी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की सरकार शासन कर रही थी , शहर कलकत्ता में दिनांक २० अगस्त १९४६ को, ५००० हिन्दुओ का कत्ले आम किया गया तथा अन्य १५००० घायल हुए तथा हजारो करोडो की संपत्ति नष्ट हुई

मुस्लिम लीग की " सीधी कार्यवाही योजना " के कारण देश की कानून व्यवस्था इतनी बिगड़ गयी कि, ब्रिटिश सरकार ने ये घोषणा कर दी कि यदि भारत के लोग मिलजुल कर अपना संविधान नहीं बना लेते है तो ऐसी हालत में वें कभी भी कहीं पर किसी के हाथो भारत की सत्ता सौंप कर इंग्लेंड वापस चले जायेंगे

सितम्बर १९४६ में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जो मुस्लिम लीग को छोड़ कर अन्य दलों द्वारा समर्थित थी , एक माह बाद मुस्लिम लीग भी अंतरिम सरकार में शामिल हो गयी किन्तु संविधान सभा का लगातार बहिष्कार करती रही , जवाहार लाल नेहरु अंतरिम सरकार में प्रधानमंत्री थे

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 3

केबिनेट मिशन प्लान के १९४६ को सब दलों द्वारा स्वीकार कर लेने के पश्चात् जुलाई १९४६ में संविधान सभा का चुनाव हुआ जिसमे मुस्लिम लीग को ७२ सीटें प्राप्त हुई, कांग्रेस को १९९ तथा अन्य १३ सदस्यों का समर्थन प्राप्त था जिस से उनकी संख्या २१२ थी तथा अन्य १६ थे

चुनाव के पश्चात पंडित जंवाहर लाल नेहरु ने ये बयान दिया कि केबिनेट मिशन प्लान १९४६ की शर्तो को बदल देंगे, जिसके कारण मुस्लिम लीग उसके नेता मोहम्मद अली जिन्ना बिदक गए तथा केबिनेट मिशन प्लान १९४६ को दी गयी अपनी स्वीकृति को वापस ले लिया और बंटवारे की अपनी पुराणी मांग को दोहराना शुरू कर दिया

अपनी मांग को मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने अपनी " सीधी कार्यवाही योजना" की घोषणा कर दी , जो दुर्भाग्य से मार काट, आगजनी की योजना थी

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम 2

३- उक्त ३०० सदस्यों में से ७८ सदस्यों को मुस्लिम समाज द्वारा चुना जाएगा क्यों की ये ७८ सीटें मुसलमानों के लिए सुरक्षित होंगी

४- चूँकि बंटवारा नहीं होगा, इसलिए मुस्लिम समाज के लिए संविधान में समुचित प्रावधान बनाया जाएगा

५- संविधान सभा सर्वप्रभुत्ता संपन्न नहीं होगी क्यों कि वह केबिनेट मिशन प्लान १९४६ कि शर्तो के अंतर्गत रहते हुए संविधान लिखेगी, जिसे लागू करने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति आवश्यक होगी

६- इस दौरान भारत का शासन प्रबंध भारत सरकार अधिनियम १९३५ के अंतर्गत होता रहेगा, जिसके लिए सर्वदलीय समर्थित एक अंतरिम सरकार को केंद्र में गठित किया जाएगा

इस प्रकार की अनेक शर्तें इस केबिनेट मिशन की थी

संविधान की रचना सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम

मार्च १९४६ को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने अपने मंत्रिमंडल के तीन मंत्रियो को भारत में भेजा था कि वे भारत के राजनेतिक नेताओ, गणमान्य नागरिको और देशी रियासतों के प्रमुखों से विचार के बाद आम सहमति से सत्ताहस्तांतरण की एक योजना बना कर उसे क्रियान्वित करें तथा भारत के लोगो को सत्ता हस्तांतरित कर दे
इस दल को केबिनेट मिशन १९४६ के नाम से जाना जाता है
इस केबेनेट मिशन ने अपनी एक योजना का एलान किया जिसे भारत के तत्कालीन सभी दलों ने स्वीकार किया जिसकी अनेक शर्तो में से निम्न मूलभूत शर्तें थी -

- भारत का बंटवारा नहीं होगा, भारत का ढांचा संघीय होगा , १६ जुलाई १९४७ को सत्ताहस्तान्त्रित होगा,
जिसके पहले संघीय भारत( united इंडिया) का एक संविधान बना लिया जाएगा, जिसके तहत आज़ादी के उपरान्त भारत का शासन प्रबंध होगा


२- संविधान लिखने के लिए ३८९ सदस्यों के "संविधान सभा" का गठन किया जाएगा, जिसमे ८९ सदस्य देशी रियासतों के प्रमुखों द्ववारा मनोनीत किये जायेंगे तथा अन्य ३०० सदस्यों का चुनाव ब्रिटिश शासित प्रान्तों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाएगा ( इन ब्रिटिश शासित प्रान्तों की विधानसभा के सदस्यों का चुनाव, भारत सरकार अधिनियम १९३५ के तहत सिमित मताधिकार से , मात्र १५% नागरिको द्वारा वर्ष १९४५ में किया गया था जिसमे ८५% नागरिको को मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया )

"इण्डिया" का संविधान कितना "भारतीय"?

भारत ना तो भारत की तथाकथित आज़ादी १५ अगस्त १९४७ को सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न रूप से आज़ाद हुआ था और ना ही २६ जनवरी १९५० को भारत का संविधान लागू हो जाने के बाद बल्कि सत्यता ये है कि भारत आज भी ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के दायरे में ब्रिटेन का एक स्वतंत्र स्वाधीन ओपनिवेशिक राज्य है जिसकी पुष्टि स्वयं ब्रिटिश सम्राट के उस सन्देश से होती है जिसे देश की तथाकथित आज़ादी प्रदान करते समय लार्ड माउंटबेटन ने १५ अगस्त १९४७ को भारत की संविधान सभा में पढ़ कर सुनाया था और ये सन्देश निम्न प्रकार था :-
" इस एतिहासिक दिन, जबकि भारत ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में एक स्वतंत्र और स्वाधीन उपनिवेश के रूप में स्थान ग्रहण कर रहा है.
मैं आप सबको अपनी हार्दिक शुभकामनाये भेजता हूँ "